भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुंभ / संजय पुरोहित
Kavita Kosh से
					Neeraj Daiya  (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem> अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अघोरी धुंआ 
फाकामस्तं अययाशी फकीरी हुनर 
माटी की चिलम
बेफिक्री का सुट़टा 
भभूत रंगी देही
राख रमा मन
चंदन गूंथी जटा
जंतर मंतर वाणी काजल  मसाणी 
जबर हठ अबोले मठ
जोगी भोगी योगी 
बेरंग बेमेल बेढब 
माला मोती मनके
तावीज बंधे प्रेत
और 
बिसरे चेहरों 
को अधपक नैनों से धकेलती
अधलेटी पलकें
एक डुबक डुबकी से
नदी उजासे
मैला तम 
डूबा मन
कराये
भौसागर पार 
देखूं विचारूं 
छिपा है 
इस मायावी बदरंग 
में ही 
रंग खरा ? 
क्याख ये 
चितराम 
क्षितिज पार 
से है 
न्यौतता मुझे ?
	
	