भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं औरत हूँ / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:16, 8 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं औरत हूँ
नहीं है मेरे पास
दो चेहरे
दो मुँह
और दो तरह का जीवन
मैं जो हूँ-हूँ
जो नहीं हूँ-नहीं हूँ
मुझे अफसोस नहीं
कि मैं सीता-सावित्री के
साँचे में फिट नहीं बैठती
बस इतना काफी है
कि मैं मनुष्य हूँ
अपनी सारी कमजोरियों और खूबियों के साथ।
मैं जिसे प्रेम करती हूँ
पकड़ सकती हूँ चौराहे पर उसका हाथ
देह और मन तो क्या
त्याग सकती हूँ सब कुछ
अनचाहे के ऐश्वर्य से परहेज है मुझे।
मैं औरत हूँ
किसी भी जनम में
तुम-सा नहीं बनना चाहती
तुम जो वर्तमान से नहीं जीत पाते
खँगालने लगते हो अतीत
प्रतिभा से पराजित
पहुँच जाते हो चरित्र तक
तुम्हारे तरकश में बहुत सारे
जहरीले तीर हैं
और साथ है समाज का
मुझे पत्थर मरवा सकते हो
चुनवा सकते हो दीवार में
फिर भी रहेगा इत्मीनान
कि मैं सच्चाई हूँ
नकारा है तुम्हारी झूठी सत्ता को
मैं औरत हूँ।