भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पर्व-त्यौहार / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:18, 8 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पर्व-त्योहार
हँसते खिलखिलाते बच्चों की तरह
झाँक लेते थे कभी-कभी
उस घर में
जिसकी खिड़की के पास
रहती थी
प्रतीक्षा-रत
एक स्त्री
अन्दर नहीं आते थे
पर्व-त्योहार
दूर से ही
हलो-हाय कर लेते थे
वह चाहती थी उन्हें बुलाना
वे हाथ हिलाकर बढ़ जाते थे आगे
कभी मजाक में मुँह भी बिरा देते
कंकड़ी भी फेंक देते
शान्त मन के पसरे सन्नाटे में
कुछ अनचाहे हिलोर पैदा करते
उसके घर को छूने से बचते हुए।