भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा मरद जानता है / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 8 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं फसल उगाती हूँ
वह खा जाता है
चुनती हूँ लकड़ियाँ
वह ताप लेता है
मैं तिनका तिनका बनाती हूँ घर
वह गृह स्वामी कहलाता है
उसे चाहिए बिना श्रम किये
सब कुछ
मैं सहती जाती हूँ
जानती हूँ
ऐसे समाज में रहती हूँ
जहाँ अकेली स्त्री को
बदचलन साबित करना
सबसे आसान काम है
और यह बात मेरा मरद
अच्छी तरह जानता है।