भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र पार करती लड़कियाँ / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:28, 8 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उदास कर जाता है उन्हें
उम्र पूछा जाना
उम्र जो उनका निजी
दुःख है
छिपाती हैं वे जिसे
बड़े जतन से
ख़तरे की सीमा पार
कर रहा है
उनका दुःख
उम्र की सीमा ख़तरे की
सीमा भी है
सीमा
जिसके बाहर जाना
पड़ेगा बाकी उम्र
दया और उपेक्षा के सहारे
उम्र उनकी दुखती रग
रग में दौड़ता दुःख
फूट पड़ता है अकेले में
बार-बार देखती है दर्पण
हताश देखती है
छोटी बहनों की
चढ़ती उम्र को
और कुढ़ती हैं
अपनी बढ़ती उम्र से।