भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुग्गा क्या बोले / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:15, 13 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुग्गे की चोंच मढ़ी सोने से
सुग्गा क्या बोले
चाँदी का पिंजरा है
मोती की झालर है
पहरे हैं
पंखों के कटने का डर है
पैरों में हीरे की झाँझर है
सुग्गा क्या डोले
सुग्गे के लाड़ बड़े
दूध-भात खाता है
रानी को
परजा के गीत
वह सुनाता है
अंधे शहजादे हैं - भेद यह
कैसे वह खोले