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सागर लौटा चट्टानों से / कुमार रवींद्र
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दिन डूब गया
सागर उलटे पाँवों लौटा
चट्टानों से
तट पर
आँखे मूँदे लौटी
कुछ नौकाएँ
सीपियाँ और गूँगे शंखों की
दुविधाएँ
आवाज़ें पिछले द्वीपों की
फिर टकरातीं हैं
कानों से
अंधे खजूर की बाँहों में
तारे उतरे
नीली मछली ने
जाल मछेरों के कुतरे
चेहरा धोकर
चुपचाप हवाएँ गुज़र गयीं
मैदानों से