भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर वही सूरज-ढले / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 13 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर वही सूरज ढले
           परछाइयों के खेल
 
नींद के
चन्दन-वनों में
यात्राएँ रोज़
जादुई सागर-तटों पर
सीपियों की खोज
 
परी द्वीपों पर
        भले अमराइयों के खेल
 
फूलवाली गली में
फिर खुशबुओं से भेंट
नशे-डूबे जंगलों में
धूप के आखेट
 
रात पेड़ों के तले
       तनहाइयों के खेल
 
एक पतझर के शहर में
पत्तियों के साथ
दिन रहे झरते
उन्हें चुपके उठाते हाथ
 
और चेहरों पर चले
       हैं झाइयों के खेल