धरती दाई गाँव के माटी / शकुंतला तरार
धरती दाई गाँव के माटी मोला चन्दन कस लागे रे
ईहाँ के पुरवाही मोर मन मा मधुबन कस लागे रे
धरती दाई के कोरा देखव गाँव के निरमल छईहाँ
हरियाली हे जम्मो कोती नइये परती भुईयाँ
नइये परती भुईयाँ माटी मोला बंदन कस लागे रे
ईहाँ के पुरवाही मोर मन मा मधुबन कस लागे रे
गाँव-गाँव के चौक मा हावे बर पीपर के छईहाँ
जेखर छांव मा लइका खेलें भँवरा बांटी घरगुंदिया
खेले सुग्घर गुइयाँ माटी मोला नन्दन कस लागे रे
ईहाँ के पुरवाही मोर मन मा मधुबन कस लागे
अमरइय्या के छांव मा देखव जुरमिल सबे समावे
लीपे-पोते घर अंगना मा सुग्घर पुरवा आवे
सुग्घर आवे पुरवा माटी बिंदावन कस लागे रे
ईहाँ के पुरवाही मोर मन मा मधुबन कस लागे रे
गुत्तुर-गुत्तुर बोली इहाँ के भाखा सुग्घर सिधवा
इहाँ के मनखे के चीन्हा हावे अंगना तुलसी के बिरवा
अंगना तुलसी के चौंरा माटी मोला नमन कस लागे रे
ईहाँ के पुरवाही मोर मन मा मधुबन कस लागे रे