भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होने का मतलब / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:15, 17 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त कुकरेती |संग्रह=चाँद पर ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पूछने को रहे हमेशा बहुत-से सवाल
मैं हर बार यही पूछता रहा
मैं यहाँ क्यों हूँ?
जवाब पाने के लिए मैंने सोचा
अब मुझे लेट जाना चाहिए
सबसे व्यस्त चौराहे पर कि
बत्ती के लाल होने का मतलब
उन्हें भी याद आ जाए
जिनकी पुतलियों में बन्द हो चुके हैं
रंग पहचानने के ख़ाने
मैं यहाँ क्यों आया हूँ?
इसका जवाब तब भी न मिलने पर
मैं खु़द को
पैरों की तरफ़ से काटना शुरू कर दूँ
इतनी ज़ोर से चीखू़ कि
फटने के बाद मेरे कमज़ोर फेकड़े
सबूत रहें मैं शहर की हवा से नहीं मरा
विश्वविद्यालयों में मेरे शव को घुमाकर
प्रश्न-पत्र में पूछा जाए कि
यह आदमी यहाँ क्यों आया!
निचाट सूनी आँखों वाला मूक आदमी
कैसे बना सवाल पूछने के लायक?
जो परीक्षा में बैठे
इस प्रश्न को अनिवार्य रूप से हल करे...