ढूँढ़ते हैं ऐसा सपना / हेमन्त कुकरेती
जब जागती है प्रार्थना
हत्यारे की आत्मा में तना हुआ चाकू
पीला पड़कर काँपने लगता है
विदूषक में फूटती है हँसी
और वह अपने लिए रोता है जी भरकर
मैं दूध लाने के लिए तोड़कर अपनी नींद
सोये हुए बेटेको देखता हूँ
वह मुस्कुरा रहा है देवताओं की
किसी भूल पर
यादें जागती हैं: जागते हैं लापता दोस्त
पीटर की कब्र मॉस्को में है
अयूब दफ़न है लेबनान
इतनी जल्दी सो गये दोनों कि
नींद तक स्तब्ध है अब तक
समय काटने को ही नौकरी माना जाता है
रोज़ श्मशान से बस पकड़कर
जाता हूँ एक पागलखाने में
इसी आने-जाने का पैसा पाता हूँ मैं
यहीं मेरा पड़ोस है
इसी नगर में है मेरा उठना-बैठना
कट रहा है जीवन इसी दुनिया में
लोगों को देखता हूँ
वह अकसर मृत मिलते हैं या सोये हुए
एक अन्तहीन लाइन में लगे हुए मिलते हैं बच्चे
अपने बुढ़ापे में उनींदे
बूढ़े कभी नहीं मिलते चैन की नींद सोये हुए
जिसके टूटने का डर नहीं हो
सब ढूँढ़ते रहते हैं ऐसा सपना
और अचानक जागकर देखते हैं
वह कौन है जो रो रहा था...