आखि़री आज़ादी / हेमन्त कुकरेती
उसने कहा मैं बहुत गोरा हूँ
मेरे सामने आओ तो चेहरा ढककर
हम उसके पैरों की तरफ़ देखने से भी डरते रहे
कुछ साल बाद वह आया
मुझे भूख ज़्यादा लगती है इन दिनों पचता कम है
हमारी रोटियाँ सहमकर सूख गयीं
वह फिर आया खू़ब महँगे कपड़े पहनकर
क्या सूझी उसे और कपड़े उतार फेंके
मारे शर्म के हमारे कपड़े उधड़ने लगे
अब फिर उसके आने पर हमने देखा कि
मोटा था पहले से
मोटा होने के बावजूद लम्बा भी लग रहा था
आते ही बोला मुझे चाहिए अधिक जगह
हम तो हटे ही अपने घर भी हटा लिये
सोचकर कि उसक रास्ते में आते हैं
बदशक्ल समय के उस प्रतिनिधि को
हम चुनते हैं
और वह फैसला करता है हमारे बारे में
सुनते हैं, वह इन दिनों लगातार आएगा
हमारी भूख़ हमारी शर्म और हमारी ज़मीन को
अपने नाम कर लेगा
कहेगा-अभी तुम इनके लायक नहीं हो
वक़्त आने पर सौंप दूँगा
वक़्त जिसे वह कभी नहीं आने देगा