भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब कुछ, कुछ-कुछ / राग तेलंग

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 19 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>कुछ क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ को जानता नहीं था
तब तक कुछ नहीं था

कुछ को जब जाना
पता चला
सब कुछ के होने का

सब कुछ भी
सब नहीं
यह समझा
कुछ नहीं से शुरूकर

अब नहीं कहता
जानता कुछ नहीं
न ही
जानता सब कुछ

बस
समझता हूं
कुछ-कुछ ।