भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुलमोहर रात ढहा / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:41, 22 दिसम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुलमोहर रात ढहा
         फूलों से लदा रहा
 
आँधी से जूझ गया
सूरज के वादे पर
सोच रहा
झरे हुए पत्तों को
लादे घर
 
अँधियाये मौसम को
         दिन ने चुपचाप सहा
 
पगली गौरैया की बातें
अनहोनी हैं
वह कहती-
बंजर में
हरियाली बोनी है
 
बैठी है फुनगी पर
        रेतीले घाट नहा