ना'त हज़रत मौहम्मद / नज़ीर अकबराबादी
रख अपने दिल में ऐ आदम के बिन<ref>आदम के पुत्र, मानव</ref> कलमा<ref>धार्मिक मंत्र</ref> मुहम्मद का।
और अपनी उंगलियों ऊपर भी गिन कलमा मुहम्मद का।
पढ़ें हैं सब परी और देव जिन कलमा मुहम्मद का।
मुसलमां हो तो मत भूल एक छिन कलमा मोहम्मद का।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल<ref>सच्चे दिल से</ref> से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥1॥
मियां यह कलमा तयब<ref>पाक कलमा</ref> तो शफ़ीउल मुजि़्नबी<ref>पैग़म्बर</ref> का है।
खु़दा के दोस्त बरहक़<ref>सच</ref> रहमतुललिलआलमी<ref>संसार पर रहमत करने वाले</ref> का है।
मुहम्मद मुस्तफ़ा यानी की ख़त्मुल<ref>अन्तिम</ref> मुरसली<ref>पैग़म्बर। जिन पर इलहामी किताब उतरी</ref> का है।
भरोसा, आसरा, तकिया<ref>सहारा</ref> भी यह दुनियाओ दीं<ref>मजहब</ref> का है।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥2॥
इसी कलमें से खुलता है सदा जन्नत का हर एक दर।
यही कलमा लिखा है अर्श<ref>आस्मान</ref> और कुर्सी<ref>ज़मीन</ref> के माथे पर।
इसी कलमे को पढ़ते हैं चमन के फूल सब खिल कर।
यह सब कलमों से है बेहतर यह सब कलमों से है बरतर।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥3॥
इसी के नूर से खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> कहलाता है नूरानी<ref>चमकता हुआ</ref>।
इसी कलमे के बाइस<ref>कारण</ref> चांद की रौशन है पेशानी<ref>माथा</ref>।
इसी कलमे के बाइस दीनोदुनिया में सनाख़्वानी<ref>प्रशंसा</ref>।
इसी कलमे को पढ़ते हैं फ़लक<ref>आस्मान</ref> अर्जो<ref>ज़मीन</ref> पवन<ref>हवा</ref> पानी।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥4॥
इसी कलमे से हैं ऐ दिल ज़मीनों आसमां रौशन।
महो<ref>चांद</ref> खुर्शीद तारे अर्शो<ref>आस्मान</ref> कुर्सी<ref>ज़मीन</ref> लामकां<ref>मकानों से परे ईश्वर-स्थान</ref> रौशन।
इसी कलमे से हैं जन्नत के बाग़ और बाग़बां रौशन।
ग़रज़ जन्नत तो क्या इससे तो हैं दोनों जहां रौशन।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥5॥
यह वह कलमा है जिसका है रहा अरमान नबियों<ref>ईश्वर के पैग़म्बर</ref> को।
इसी कलमे के पढ़ने से गये हैं लोग आरिफ़<ref>ज्ञाता, ब्रह्म ज्ञानी</ref> हो।
इसे हूरो<ref>सुन्दर, अप्सरा</ref> मलक<ref>फ़रिश्ता</ref> ग़िल्मां<ref>स्वर्ग के बालक</ref> पढ़े हैं हर शहर<ref>सुबह</ref> मुंह धो।
वह बेशक जन्नती<ref>जन्नत, स्वर्ग में रहने वाले</ref> है एक बारी जो पढ़े इसको।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥6॥
इसी कलमे की बरकत<ref>नेकी</ref> से तू अब यां भी सलामत<ref>सुरक्षित, स्वस्थ, ठीक</ref> है।
पढ़ेगा जो इसे उसका दिलो जां<ref>दिल और जान</ref> भी सलामत है।
उसी की आक़बत<ref>यमलोक</ref> भी ख़ैरो ईमां<ref>धर्म पर दृढ़ विश्वास, भलाई और ईमान</ref> भी सलामत है।
पढ़कर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥7॥
चलेगा जिस घड़ी तू छोड़कर यह आलमे फ़ानी<ref>मिटने वाली दुनियाँ</ref>।
पड़ेगा क़ब्र के जाकर अंधेरे में हो जनदानी<ref>क़दी</ref>।
नक़ीरो<ref>कब्र में सवाल जवाब करने वाले</ref> मुनकिर<ref>कब्र में सवाल जवाब करने वाले फरिश्ते</ref> आकर जब करेंगे तुझ पै तुगयानी<ref>ज्यादती</ref>।
यही कलमा करेगा वां तेरी मुश्किल की आसानी।
पढ़ाकर स्दिक़ से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥8॥
इसी कलमे ने इजराईल<ref>रूह को क़ब्ज करने वाला फ़रिश्ता</ref> की हैबत<ref>डर</ref> को टाला है।
इसी कलमे ने तंगी<ref>सिकुड़ी हुई</ref> को लहद<ref>कब्र</ref> की खोल डाला है।
पड़ेगा क़ब्र का तुझ पर मियां वह दिन जो काला है।
यही कलमा तेरा वां भी अंधेरे का उजाला है।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥9॥
सफ़े मह्शर<ref>कयामत का दिन</ref> में जब दहशत<ref>ख़ीफ</ref> का तुझ पर वार<ref>हादसा, घटना</ref> उतरेगा।
यही कलमा तेरा उस जा रफ़ीक<ref>मित्र</ref> और यार उतरेगा।
गुनाहों का तेरा जितना है बोझ और भार उतरेगा।
इसी कलमे की दौलत से मियाँ तू पार उतरेगा।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥10॥
मियाँ जब पुलसिरात<ref>दोजख़ पर बाल से ज़्यादा बारीक और तलवार की धार से भी ज्यादा तेज़ पुल</ref> ऊपर तू अपना पैर डालेगा।
तो वह तलवार की ही धार तेरा पांव खालेगा।
लगेगा जब वहां गिरने तो यह कलमा बचा लेगा।
यही बाजू पकड़ लेगा, यही तुझको संभालेगा।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥11॥
सवा नेजे़<ref>सवा भाले, सवाबाँस</ref> के ऊपर जबकि होगा आफ़ताब<ref>सूरज, तेज गर्मी का जोर</ref> आया।
हर एक गर्मी की ताबिश<ref>आग की लपट</ref> से फिरेगा सख़्त घबराया।
पड़ेगा जब तेरे तन पर भी शोला<ref>चिंगारी, अग्निकण</ref> उसका गरमाया।
यही कलमा छतर बनकर करेगा तुझ पै वां साया।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥12॥
तुलेंगे जब वहां सबके अमल<ref>कर्म</ref> मीजा<ref>तराजू</ref> के पल्ले पर।
जो हलके हैं पड़ेंगे आतशी<ref>आग का गर्म</ref> गुर्ज<ref>गदा</ref> उनके कल्ले पर।
तुझे तोलेंगे जिसदम उस तराजू के महल्ले<ref>जगह</ref> पर।
यही कलमा मियां वां भी तेरे होवेगा पल्ले पर।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥13॥
जो पूरे हैं मियाँ उनकी तो होगी गर्म बाज़ारी<ref>क़द्रोक़ीमत</ref>।
कमी है जिन्स<ref>सौदा, चीज़</ref> जिनकी उनकी वां होगी बड़ी ख़्वारी।
तेरा पल्ला भी जब करने लगेगा वां<ref>वहां</ref> सुबक सारी<ref>बेतअल्लुकी</ref>।
यही कलमा बनावेगा तेरे पल्ले को वां भारी।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥14॥
पड़ेगा अल अतश<ref>पूरे ही</ref> का शोर उस मैदां में जब आकर।
फिरेंगे पानी-पानी करते मारे प्यास के अक्सर।
तेरे भी जब लगेंगे सूखने तालू ज़बां यक्सर।
यही कलमा तुझे पानी पिलावेगा मियां भर-भर।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥15॥
यही कलमा तुझे दीदार<ref>दर्शन</ref> हक़<ref>सत्य, ईश्वर</ref> का भी दिखावेगा।
मुहम्मद की शफ़ाअत<ref>सिफ़ारिश</ref> से भी तुझको बख़्शवावेगा<ref>माफ़ कराएगा</ref>।
बहिश्ती<ref>जन्नती</ref> करके हुल्ले<ref>पोशाक</ref> नूर के तुझको पिन्हावेगा।
बड़ी इज़्ज़त बड़ी हुर्मत<ref>बहुत इज़्ज़त</ref> से जन्नत में ले जावेगा।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥16॥
यही कलमा तुझे वां जाम कौसर<ref>जन्नत की एक विशेष नहर</ref> का पिलावेगा।
यही कलमा तुझे गुलज़ार<ref>बाग</ref> जन्नत के दिखावेगा।
यही कलमा तेरा मुंह चांद सा रौशन बनावेगा।
यही कलमा तेरे हर बक़्त वां पर काम आवेगा।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥17॥
यही कलमा निजात<ref>छुटकारा</ref> और मग़फ़िरत<ref>आकाश</ref> का है तेरे चारा॥
इसी कलमें से तेरी रूह<ref>आत्मा</ref> होगी अर्श<ref>आकाश</ref> का तारा।
इसी कलमे से है हम सब गुनहगारों<ref>पापी</ref> का छुटकारा।
इसी कलमे से होगा दीन<ref>धर्म</ref> और दुनिया से निस्तारा<ref>पारा जाना</ref>।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥18॥
मियां अब जो यह कलमा है यह हक़<ref>ईश्वर</ref> की ख़ास रहमत<ref>इनायत, महरबानी</ref> है।
यह सदके़<ref>दान</ref> से रसूलुल्लाह<ref>हजरत मुहम्मद साहब</ref> की हम पर इनायत<ref>महरबानी</ref> है।
इसी से यां ”नज़ीर“ इज्जत इसी से वां शफ़ाअत<ref>सिफ़ारिश</ref> है।
यही सब मोमिनो<ref>ईमान वालों के लिए</ref> के वास्ते अफ़जल<ref>श्रेष्ठ</ref> इबादत<ref>आराधना</ref> है।
पढ़ाकर सिद्क़ दिल से रात दिन कलमा मुहम्मद का॥19॥