भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्रत / रजत कृष्ण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:48, 4 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रजत कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने आज व्रत रखा
पति के लिए
कुछ दिनों पहले
व्रत रखा था
पुत्र-पुत्रियों के लिए ।

तुम व्रत रखती हो
शिव-शंकर को याद करते हुए
राम-कृष्ण और उनके
अन्य अवतारों के नाम भी ।

धरती तो धरती
तुम्हारे हिस्से मढ़ा है
व्रत चाँद का, सूरज का
और अमावस्या का भी

वट, पीपल, आँवला
तुलसी सहित रखती हो
व्रत तुम
जानें कितनी ही
वनस्पतियों का !

स्त्री एक बात तो बताओ
क्या कोई व्रत है ऐसा
जिसमें वह पुरूष
तुम्हारा साथ देता
जिसके लिए तुम
रहती हो निर्जला
पूजती हो समझ कर उसे
दुनिया का सबसे बड़ा देवता ।।