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हरि जी का सुमिरन / नज़ीर अकबराबादी

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श्री कृष्ण जी की याद दिलो जां से कीजिए।
ले नाम वासुदेव का अब ध्यान कीजिए।
क्या बादा<ref>प्याला, जाम</ref> बेखु़मार<ref>जिसमें नशा न हो</ref> दिलो जां से पीजिए।
सब काम छोड़ नाम चतुर्भुज का लीजिए॥
जो दम है जिन्दगी का यह सुमिरन में दीजिए।
आये हैं भक्त हेत जो साहब जमीं उपर।
सब-रोज दिलोजान से करता है शोर शर।
मादर पिदर बिरादरओ फ़रज़न्द<ref>पुत्र</ref> पर न भूल।
दिन चार के हैं यार यह सुनता है ऐ मझूल<ref>अशिक्षित, अयोग्य</ref>।
कितने हजार शाह पड़े हैं बखालेधूल<ref>मिट्टी में</ref>।
कहता हूँ बार बार तू करता नहीं कबूल॥ सब.

इस नाम के लिये से हजारों हुये हैं पार।
गनका वो अजामील से लक्खों कई हजार।
रैदास व सदना का मैं क्या करूँ शुमार।
कहता हूँ बार बार तू करता नहीं कबूल॥ सब.

इस नाम के लिये से हजारों हि तर गये।
टांडा जो लाद आप कबीरा के घर गये।
मांगन को दान राम जी जो बलि के घर गये।
रावन की मार राज भभीखन को कर गये॥ सब.

धन्ना का खेत तुख़्म<ref>बीज</ref> बिन कुदरत से बो दिया।
दारिद्र एक पल में सुदामा का खो दिया।
जिन मैल दिल से मिर्ज़ा व माधो का धो दिया।
हिन्दू तुरक का भेद दिलों जां से खो दिया॥ सब.

प्रहलाद हेत राम ने नरसिंह औतार धर।
मारा हैं हरनाकुस को जब खंब फाड़ कर।
लाया है भक्त अपने को ग़म से उबार कर।
भौंचक्का हो के देख रहे सब निहार कर॥ सब.

जिन नामदे की गाय को मुई का जिला दिया।
आबे खिजर<ref>अमृत</ref> का उसको प्याला पिला दिया।
सरमिन्दा होके सेना ने सर को नवा दिया।
श्री राम जी का कहना हरदम रवाँ किया॥ सब.

शंख पद्म युक्त चक्र गदा बिरजें हाजरी।
करती है मेरे दिल में जो आवाज बाँसुरी।
कहता है लालजी वो बरहमन घड़ी, घड़ी।
रख याद दिल से नाम चतुर्भुज हरी हरी।
सब काम छोड़ नाम चतुर्भुज का लीजिए।
जो दम है जिन्दगी का सुमिरन में दीजिए॥3॥ सब.

शब्दार्थ
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