पेट / नज़ीर अकबराबादी
किसी सूरत नहीं भरता ज़रा पेट, यह कुछ रखता है अब हर्सो हक।
अगर चोरी न करता चोर यारो, तो होता चाक कहो उसका भला पेट॥
चले हैं मार अशराफ़ों को धक्का, मियाँ जिस दम कमीने का भरा पेट।
नहीं चैन उसको इस क़ाफ़िर के हाथों, है छोटा जिसका अघसेरा बना पेट॥
ख़ुदा हाफिज़ है उन लोगों का यारो, कि जिनकी है बड़ी तोंद और बड़ा पेट।
सदा माशूक पेड़े मांगता है, मलाई सा वह आशिक को दिखा पेट॥
और आशिक़ का भी इसके देखने से, कभी मुतलिक नहीं भरा पेट।
गरीब आजिज़ तो हैं लाचार यारो! कि उनसे हर घड़ी है मांगता पेट॥
तसल्ली खूब उनको भी नहीं है कि घर दौलत से जिनके फट पड़ा पेट।
किसी का यह मुहिब न यार न दोस्त फ़क़त रोटी का है इकआश्ना पेट॥
भरे तो इस खुशी से फूल जावे कि गोया बाँझ के तई रह गया पेट।
जो खाली हो तो दिन को यों करे सुस्त किसी का जैसे दस्तों से चला पेट॥
बड़ा कोई नहीं दुनियां में यारो मगर कहिए तो सबसे बड़ा पेट।
हुए पूरे फ़क़ीरी में वही लोग जिन्होंने सब से अपना कसा पेट॥
लगा पूरब से लेकर ताबः पच्छिम लिए फिरता है सबको जा बजा पेट।
कई मन किया गया मज़मून का आटा ‘नज़ीर’ इस रेख्ते का है बड़ा पेट॥