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दुआए तन्दुरूस्ती / नज़ीर अकबराबादी

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है मर्द अब वही, कि जिन्हों का है फन दुरुस्त।
हुर्मत उन्हों के वास्ते, जिनका चलन हुरुस्त॥
रहता नहीं किसी का, सदा माल धन दुरुस्त।
दौलत रही किसी की, न बाग़ो चमन दुरुस्त॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥1॥

दुनियां में अब उन्हों के तई, कहिये बादशाह।
जिनके बदन दुरुस्त हैं, दिन रात सालो माह॥
जिंस पास तुन्दुरुस्तीयो हुर्मत की हो सिपाह।
ऐसी फिर और कौन सी, दौलत है वाह, वाह॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥2॥

जो घर में अपने मीरी व हश्मत पनाही है।
बिन तन्दुरुस्ती सब, वह खराबी तबाही है॥
यह तन्दुरुस्ती यारो, बड़ी बादशाही है।
सच पूछिये तो ऐन, यह फ़ज़्ले इलाही है॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥3॥

गर दौलतों से उसका भरा है तमाम घर।
बीमार है तो ख़ाक से बदतर है सब वह ज़र॥
हो तन्दुरुस्त गरचे यह मुफ़्लिस है सर बसर।
फिर न किसी का ख़ौफ़, न हरगिज किसी का डर॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥4॥

आजिज़ हो या हक़ीर हो पर तन्दुरुस्त हो।
बे ज़र हो या अमीर हो पर तन्दुरुस्त हो॥
कै़दी हो या असीर हो पर तन्दुरुस्त हो,
मुफ़्लिस हो या फ़क़ीर हो पर तन्दुरुस्त हो॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥5॥

इसमें तमाम खत्म हैं, आम की खू़बियां।
हो तन्दुरुस्ती और, मिले हुर्मत से आबो ना॥
क़िस्मत से जब यह दोनों, मयस्सर हों फिर तो वां।
फिर ऐसी और कौन सी, नेंमत है मेरी जां॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥6॥

परवा नही अगरचे, लिखा या पढ़ा न हो।
मोहताज हक़ सिवा, पै किसी और का न हो॥
हुस्नो, जमालो, इल्मो, हुनर गो मिला न हो।
एक तन्दुरुस्ती चाहिए, कुछ होवे या न हो॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥7॥

बीमार गरचे लाख तरह से हो बादशाह।
तो उसको जानिये यह गदा से भी है तबाह॥
हम तो उसी को शाह कहें और जहां पनाह।
अब जिसका तन्दुरुस्त हो, हुर्मत से हो निवाह॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥8॥

हों गरचे लाख दौलतें, बीमार के कने।
और नेमतों के ढेर लगे हों, बने ठने॥
बेहतर हैं मुफ़्लिसी के मियां, चाबने चने।
जो तन्दुरुस्त हैं, वही दूल्हा हैं और बने॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥9॥

जब तन्दुरुस्तियों की, रहीं दिल में बस्तियां।
फिर सौ तरह के ऐश हैं और मै परस्तियां॥
खाने को नेमतें हों, व या फाक़ा मस्तियां।
सब ऐश और मजे़ हैं, जो हों तन्दुरुस्तियां॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥10॥

चाहा जो दिल नशे को तो वोही मंगा लिया।
मेहबूब दिल बरों को गले से लगा लिया॥
आया जो ऐश में, खुशी से उड़ा लिया।
जो मिल गया सो पी लिया, चाहा सो खा लिया॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥11॥

आया जो दिल में सैरे चमन को चले गये।
बाज़ार चौक, सैर तमाशे में खुश हुए॥
बैठे उठे खु़शी में, हर एक जा चले फिरे।
जागे मजे़ में रात को, या खुश हो सो रहे॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥12॥

कुदरत से यह जो तन की, बनी है हर एक कल।
जब तक यह कल बनी है, तो है आदमी को कल॥
गर हो खु़दा नख्वास्ता एक कल भी चल व चल।
फिर न खु़शी, ने ऐश, न कुछ जिन्दिगी का फल॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥13॥

अदना हो या ग़रीब, तवंगर हो या फ़क़ीर।
या बादशाह शहर का, या मुल्क का वज़ीर॥
है सबको तन्दुरुस्तियों हुर्मत ही दिल पज़ीर।
जो तूने अब कहा, सो यही सच है ऐ ‘नज़ीर’॥
जितने सुख़न हैं सब में, यही है सुख़न दुरुस्त॥
अल्लाह आबरू से रखे, और तन्दुरुस्त॥14॥

शब्दार्थ
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