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शब-बरात-3 / नज़ीर अकबराबादी

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आई शबबरात खिला दिल का गुलझड़ा।
हलवे चपातियों का हर इक घर में फुलझड़ा॥
हथफूल और अनार की झड़ियों से गुलझड़ा।
तोड़े के आशिक़ों के यही आके गुलझड़ा॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥1॥

गंधक हज़ार मन है तो शोरा है लाख मन।
और कोयलों के वास्ते फूकूंगा एक वन॥
लोहे के कूटने से भी टूटे हैं कई घन<ref>लुहार का भारी हथौड़ा</ref>।
अब इस तरह के वज़्न का आकर खिला चमन॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥2॥

पहले तो इसने छूट के मारा पहर<ref>तीन घंटे का समय</ref> का दम।
फिर तीन चार बार में ग्यारह पहर का दम॥
था उसका अगले बरस में बारह पहर का दम।
और अबके साथ में तो अठारह पहर का दम॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥3॥

आगे तो छोड़ते थे इसे चढ़के झाड़ पर।
फिर कितनी बार छोड़ा है कड़ियों को पाड़ पर<ref>मचान</ref>॥
और इसके रफ्ता रफ्ता एक ऊंचे से ताड़ पर।
और अबके इसको छोड़े हैं चढ़कर पहाड़ पर॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥4॥

सहरी को हंसके देखियो ज़रा यार इस घड़ी।
मोटी बड़े सतूल से जिसकी है इक खड़ी॥
फूटा अनार, फुलझड़ी दर से उगल पड़ी।
भागे मचाके शोर छछूंदर, कलमनड़ी॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥5॥

पहुंची है आसमान तलक उसकी धूमधाम।
इतना बड़ा है तिस पै धुंए का नहीं है नाम॥
उस्ताद जानते हैं यह क्या है, क्या है नाम?
आरिफ़ भी आज होता तो करता हमें सलाम॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥6॥

हाथी जो शब्बरात के आए हैं रात हूल।
यह फुलझड़ा इस हाथी की है टाट का फिजूल॥
कोसों तलक ज़मीं पै पड़े छूटते हैं फूल।
क्यों कर भला न हम कहें इस वक़्त फूल-फूल॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥7॥

छुटने में क्या मज़ाल जो उगले कहीं ज़रा।
बुर्राक इस क़दर है कि चांदी का क्या भला॥
उस्ताद ही खड़े हो तुम ऐ यार! जा बजाह।
ऐसा भला चढ़ाया है किसी ने वाह! वाह!
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥8॥

महताबी इसके सामने मुंह ज़र्द हो गई।
नसरी व जाई जूही भी दिल सर्द हो गई॥
चादर भी उसके सामने पे पर्द हो गई।
गुलकारी किस क़द्र थी वह सब गर्द हो गई॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥9॥

जी चाहता था इससे बनायें ज़रा बड़ा।
क़ालिद<ref>ढांचा</ref> पड़ा हुआ बड़ा कोई ले गया चुरा॥
जल्दी में शब्बरात के कुछ भी न हो सका।
लाचार होके हमने यह इतना ही भर लिया॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥10॥

बे रोज़गारियों से सभों के हैं दिलबुझे।
इस वक़्त में ज़रा कोई ज़र्की तो छोड़ते॥
सौ आफरी<ref>शाबाश</ref> हमें हैं कि सौ क़र्ज दाम ले।
छोटा सा इक अदद तो बनाके हैं छोड़ते॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥11॥

पैसा हमारे पास जो होता तो यारो आह!
सौ दो सौ ऐसे छोड़ते हम आज ख़्वामख़्वाह॥
करना पड़ा है अब तो में पेट का निबाह।
वह भी मियां ”नज़ीर“ ग़नीमत है वाह! वाह!॥
क्या छूटता है देखिए! यारों का फुलझड़ा॥12॥

शब्दार्थ
<references/>