आशिक़ का झूला / नज़ीर अकबराबादी
आलम में अयां अब तो है बरसात का झूला।
बाग़ों में दरख़्तों का मकानात का झूला॥
बदली का है हर जां पै अयानात का झूला।
सावन में तो पड़ता है यों हर जात का झूला॥
पर गुलबदनों का है अ़जब घात का झूला॥1॥
इस अब्र में रोने का मेरे शोर है घर-घर।
बिजली भी जली आह से बदली भी हुई तर॥
ज़ालिम मेरी आंखों की तरफ़ कुछ तो नज़र कर।
झूले है मेरा शामो सहर दिल तेरे ऊपर॥
है मुझको तेरे ग़म में यह दिन रात का झूला॥2॥
तुझको तो मैं ज़ालिम न किसी हाल में भूलूं।
झूले का हो मौसम तो मैं झूले में न झूलूं॥
खू़बां तो हैं क्या चीज़ जो जो मैं उनको कु़बलूं।
परियों के भी ऐ जाना! कभी साथ न झूलूं॥
गर मुझको पता होवे तेरे साथ का झूला॥3॥
झूले में तो रहता हूं तेरे पास मैं हर आँ।
पर खू़ब निकलता नहीं दिल का मेरे अरमाँ॥
सुथरा सा मकां हो और ऐश का सामां।
झूले की बहारें तो मची हों उस घड़ी ऐ जां!॥
जब मेरे गले में हो तेरे हाथ का झूला॥4॥
इस रुत में मेरी जान न किसी गै़र के झूलो।
यह रक़ काा हाथी मेरे सीने पै न हूलो॥
हर्गिज़ मेरे कहने को तुम ऐ जान! न भूलो।
झूलो तो अकेले ही मेरे सामने झूलो॥
सूना है क्या अबके यह बरसात का झूला॥5॥
रेशम की भी डोरी का अजब रंग है गहरा।
मुक़्कै़श के बानों से खटोला रहा लहरा॥
गुच्छा कहीं मोती का है दुहरा व इकहरा।
जैसा तेरा झूला है रुपहरा व सुनहरा॥
ऐसा तो न परियों का न जिन्नात का झूला॥6॥
करता है हर इक पैग में बातें यह हवा से।
बदली के तईं मारे है रातें यह हवा से॥
इश्रत की दिखाता है बरातें यह हवा से।
बिन झोटे के करता है जो बातें यह हवा से॥
झूलों में तेरा है यह करामात का झूला॥7॥
जैसा कि है झूले में तू अब झूलने वाला।
ऐसा है न कोई शख़्श न झूला कोई ऐसा॥
जिसने कि तुझे झूले पै अब झूलते देखा।
झूला हो किया पर यह दिवाना हो सरापा॥
डाल अपने तसब्बुर में खयालात का झूला॥8॥
आया जो ज़रा शब को मेरे पास वह दिलख़्वाह।
झूला ही किया साथ मेरे ता ब सहरगाह॥
क्या ऐश मयस्सर हुए हैं अल्लाह ही अल्लाह।
झूला हूं बहुत यो तो मैं आगे भी ”नज़ीर“ आह॥
पर यार न भूलेगा मुझे इस रात का झूला॥9॥