भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल्ली - दो / अर्पण कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:05, 27 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्पण कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं चाहता हूँ
दिल्ली में
कुछ दिनों के लिए
‘ब्लैक-आउट’ हो जाए
मैं देखना चाहता हूँ
जगमगाते उजालों के बावजूद
अपराध-राजधानी बना
यह शहर
सचमुच के अँधेरे में
क्या गुल खिलाता है !
रोशनी में जो दिखता है
वह हमें अक्सरहाँ
चकाचौंध ही करता है
............
मैं अँधेरे में
भारत की राजधानी का
फक्क पड़ता और
सफेद होता चेहरा
देखना चाहता हूँ ।