भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंगल प्रातहि उठे / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:46, 30 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंगल प्रातहिं उठे दोऊ कुंजनि तैं आवत।
मंगल तान रसाल सुमंगल वेनु बजावत॥
मंगलमय अनुराग भरी हरि वचन बतावत।
मंगल प्यारी विहँसि श्याम को चित्त चुरावत॥
मंगल गलबाहीं दिये दोउ दुहून लखि मोहते।
बद्री नारायन जू खरे मंगलमय छवि जोहते॥