भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंगलाचरण - 1 / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:48, 30 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लसत सुरँग सारी हिये हीरक हार अमन्द।
जय जय रानी राधिका सह माधव बृजचन्द॥
नवल भामिनी दामिनी सहित सदा घनस्याम।
बरसि प्रेम पानीय हिय हरित करो अभिराम॥
यह पियूष वर्षा सरस लहि सुभ कृपा तदीय।
साँचहुँ सन्तोषैं रसिक चातक कुल कमनीय॥