Last modified on 3 फ़रवरी 2016, at 12:23

स्फुट - 2 / प्रेमघन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 3 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँवरि सूरति मूरति मैन, मयंक लखे मुख जासु लजो है।
मोर पखौवन को सिर मौर, गरे बन माल धरे मन मोहै॥
सीकर सोभा सुधा बरसाय कै, आय हिये घनप्रेम अरो है।
बावरी मोहिं बनाय गयो, मुसकाय के हाय न जानिये को है॥