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पावस - 5 / प्रेमघन
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कूकैं कोकिलान हिय हूकैं देत आन,
विरहीन अबलान सोर सुनि मुरवान की।
दादुर दलन की रटान चातकन की,
चिलात छन छन चमकान चपलान की॥
पैठी मान तान भौन भौंहन कमान,
भूलि प्रेमघन बान बीर पीतम सुजान की।
कैसे कै बचैहै प्रान बीर बरखान लखि,
घुमड़ि घमड़ि घन घेरन घटान की॥