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भिक्षा घाल दे मेरै / मेहर सिंह

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अमृतसर में राजा अम्ब राज किया करते थे। उनकी रानी का नाम अम्बली तथा दो पुत्रों के नाम सरवर और नीर थे। राजा अत्यन्त सत्यवादी और धर्मात्मा पुरुष थे। उनकी परीक्षा लेने के लिए एक दिन स्वयं भगवान साधु का वेश धारण कर राजा अम्ब के दरबार में अलख जगाते हैं। यहां से सरवर और नीर का किस्सा शुरू होता है-

गऊ माता की जय।
====जवाब साधु का====

राजा के दरबार मैं भूखा खड़या सै फकीर
भिक्षा घाल दे मेरै।टेक

दुःख की घड़ी बीत रही आज
मेरे दुख का करो ईलाज
मोहताज फिरुं सूं बेकार मैं, दिये दुख की काट जंजीर
जै कुछ रहम हो तेरै।

मै निरभाग कर्म का मुआ
यो सै पेट नरक का कुआ
हुआ सब तरिया लाचार मैं, मेरी ले लिए दया अमीर
भूख्यां नै आसरा दे रै।

मेरी माल्यक नै अक्ल हड़ी
पाच्छली रेख कर्म की अड़ी
मेरी नाव पड़ी मझधार म्हं, गई डुबो मेरी तकदीर
पटकी पड़ गई के रै।

हो लिया सब तरिया तै तंग
ईब ना रह्या जीणे का ढंग
मेहर सिंह संसार मैं स्थिर रह ना शरीर
ला भगवान मैं नेह रै।