वार्ता- राजा अम्ब सरवर और नीर को लेकर चम्बल दरिया के किनारे पहुंच जाते हैं। जब वे सरवर नीर को लेकर दरिया के दूसरे किनारे पहुंचाते हैं और नीर को लेने वापिस आते हैं तो विचार करते हैं-
अम्ब जब वापिस धाया
कदम आगै बढ़ाया
बीच दरिया के आया तो कजा शीश छाई।
ऐ मेरे लख्ते जिगर, हो किसके मन्तजर
तुम्हारा मरता फिदर कुछ ना पार बसाई।
घर में था काफी मालो खजाना
जिस का कुछ ना ठिकाना
था एक साधु का बाना, अलख आ जगाई।
साज सारा लिया
ताज न्यारा लिया
राज म्हारा लिया, दे दी हम को गदाई।
ये जान आ गई कहर मैं
पिता चम्बल की लहर मैं
उज्जैन शहर मैं करी थी कमाई
भठियारी हत्यारी-
नेकर दी खवारी-
हमारी महतारी तुम्हारी से हो गई जुदाई।
ओ मेरे नयनों के तारे
दे धरती कै मारे
रहोगे अब किस के सहारे थारा कोए वाली वारिस ना भाई।
मत हो हिजर बिसर मैं
दुःख भरना उम्र भर मैं
ईश्वर के घर मैं ना होगी तुम्हारी सुनाई।
छन्द का गाना
है मुश्किल बनाना
चलाना बहर का है जुबां की सफाई।
मेहर सिंह छन्द धरना ना कच्चा
हर समरना है सच्चा
काम करना है अच्छा, होगी जग मैं भलाई।