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मैं, तुम और अधूरा प्रेम / रेणु मिश्रा
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तुम्हारी उपस्थिति मेरे जीवन में
वैसे ही है जैसे
स्वर की व्यंजन में
तुम्हारे बिना
बिलकुल आधी-अधूरी
बेमतलब, बेज़ुबान
तुम्हारे बिना जीवन रहता है
बच्चों के मन-सा कन्फ्यूज्ड
बिलकुल वैसे ही जैसे
कि वो श, ष, स, ह पढ़ते वक़्त
समझ नही पाते
कि ष को श से षट्कोण पढ़ें
या ख से खटकोण
जीवन के बहुत से ज़रूरी सवालों की तरह
अभी तक ये सवाल भी अनुत्तरित है
कि ढ़ाई आखर प्रेम की परिभाषा
आखिर अभी तक क्यों है अधूरी
जबकि मैं करती हूँ तुमसे
बचपन में अ से ज्ञ तक रटे
वर्णाक्षरों की तरह पूरा प्रेम
लेकिन भरोसा है कि
जीवन की आधी-अधूरी पाठशाला में
प्रेम की पूरी परिभाषा
सीख ही लेंगे!!