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हिसाब / सीत मिश्रा
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आज हिसाब कर ही लेते हैं
तुम्हारे जाने से
क्या बदल गया, कुछ भी तो नहीं
बस तकलीफें नहीँ बांटती किसी से
तुम्हारी तरह कोई ध्यान नहीं रखता
समय बोझिल हो उठा है कटता ही नहीं
आंखें बेवजह पनीली हैं
इन्तजार करने की लत भी खत्म हो रही है
सांसे चल रही हैं धड़कनों की रफ्तार भी वही है
मैं ठीक हूं बस सपने मर गए
एक साथ ही तो छूटा, तकलीफ बड़ी है क्या?
बंद सी मुठ्ठी में खाली हाथ रह गया
मेरा तो कुछ गया नहीं लेकिन मुझमें मुझ सा बचा भी नहीं
बीतते वक्त के साथ मैं खर्च हो गयी
फिर भी इस सौदे में बड़ा घाटा हुआ तुम्हें
मेरे हिसाब का निष्कर्ष यही कह रहा है
भूल-चूक लेनी-देनी का हिसाब तुम्हीं कर लो
मैं जानती हूँ व्यवसायी तुम अच्छे हो
घाटे को मुनाफे में तब्दील कर लोगे।