(एक विरह गीत)
उज्ज्वल मुख और सुन्दर हर कण
निकले हो क्या बन - ठन, चन्दा
आज रात तुम छत पर आना
दुँगी मैं यह तन - मन, चन्दा
दुःख होता है देख देख कर
यहाँ - वहाँ से चलना तेरा
दिल के द्वार खुले रखे हैं
आ जाना तुम इक क्षण, चन्दा
छुप जाते हो बीच – बीच में
तड़पाते हो क्यों मन मेरा
पलकों के रास्ते से आना
दूँगी मैं यह चितवन , चन्दा
प्यार का इन्द्गधनुष भी दूँगी
और आँसू के कुछ तारे भी
तुम आना मैंने रखा है
आँखों का एक गगन , चन्दा
पायल की झंकार भी दूँगी
गजरे की महकार भी दूँगी
बदले में मांगूंगी केवल
प्रीत का ही एक कंगन, चन्दा
तेरे पग - पग फूल बिछाऊँ
हर एक पग पर गीत सुनाऊँ
बिन्दिया का दर्पण भी दूँगी
तुम ही मेरे साजन चन्दा
बैठ के बालों की छाया में
होठों की मदिरा तुम चखना
यौवन के सब बेर और जैफल
कर दूँगी मैं अर्पण , चन्दा
बाँहों का बेला भी दूँगी
आँखों का जादू भी दूँगी
और साँसों की यह गर्मी भी
तुम ही हो मन - भवन, चन्दा
उज्ज्वल मुख और सुन्दर हर कण
निकले हो क्या बन - ठन, चन्दा
आज रात तुम छत पर आना
दुँगी मैं यह तन - मन, चन्दा