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हंस / निदा नवाज़
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आँखों की दो
पोखरियों में सिमटा
वह हंस
क्षण में बनता है
आकाश भर
और क्षण में
शून्य भर
और झेलता है तनाव
एक पूरे मरुथल भर का
मेरे आग उगलते
इस चिनार शहर में.