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इच्छा / निदा नवाज़

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हम बस क्षण भर
मुस्कुराते हुए जीने की
इच्छा करते थे
उनहोंने
शताब्दियों के सपने दिखा कर
वह क्षण भी हम से छीन लिया
जबकि हम जानते हैं
जब अंधे उजाला बांटने का
दावा करें
तो क्या बेसाख़्ता
नहीं आती हंसी.