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जब छेड़ा मुजरिम का क़िस्सा / गौतम राजरिशी

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जब छेड़ा मुजरिम का क़िस्सा
उट्ठा फिर हाकिम का क़िस्सा

लड़ती शब भर आँधी से जो
लिख उस लौ मद्‍धिम का क़िस्सा

सुन लो सुन लो पूरब वालों
सूरज से पश्‍चिम का क़िस्सा

छोड़ो तो पिंजरे का पंछी
गायेगा ज़ालिम का क़िस्सा

जलती बस्ती की गलियों से
सुन हिंदू-मुस्लिम का क़िस्सा

बूढ़े मालिक का शव बोले
दुनिया से ख़ादिम का क़िस्सा

कहती हैं बारिश की बूंदें
सुन लो तुम रिमझिम का क़िस्सा



(युगीन काव्या, जुलाई-सितम्बर 2009)