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प्राणों का दीप / विमल राजस्थानी

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ज्योति से निज घर-आँगन लीप
जल रहा है प्राणों का दीप
जूही के कुंजों में चुपचाप
नयन में स्वर्णिम सपने पाल
विभा रानी की सुरभित साँस
यत्न से उर में सँजों-सँभाल

अश्रु की मोहक मदिरा पिये
किसी के जीवन-कुंज-समीप
जल रहा है प्राणों का दीप

झूमती आती मलय बयार
चूम लौ को दे जाती प्यार
झिमिर-झिम झुक-झुक आते मेघ
सौंप जाते आँसू दो-चार

अँधेरी रात, किसी के लिए
जल रहा तिल-तल तरुण प्रदीप
जल रहा है प्राणों का दीप

-आकाशवाणी के पटना केंद्र से प्रसारित
23.5.1940