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जीत यह जग की नहीं है / विमल राजस्थानी
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जीत यह जग की नहीं है
यह नहीं है हार मेरी
प्रेम की विरुदावली तो युग-युगों से गुंजरित है
आत्मा के कल्प-तरु पर प्रेम पुष्पित-पल्लवित है
सोख सकती है नहीं दुनिया हृदय का प्रेम-आसव
सृष्टि आप्लावित करेगी ही सुधा की धार मेरी
कौन अपना है, पराया कौन है, यह कौन जाने
हृदय में जो छवि बसायी, डँस लिया उसने अजाने
मैं किसे गल-हार समझूँ, मान किसको सर्पिणी लूँ
किसे सौंपू क्रोध, लेगा कौन प्रिय मनुहार मेरी
यह दिशा-निर्देश मेरे प्यार की गति ही करेगी
रिक्त उर का पात्र मधु से मधुर स्मृतियाँ भरेंगी
देख असफलता लगाती व्यर्थ ही दुनिया ठहाका
सफलता की सृष्टि होने में लगेगी नहीं देरी
जीत यह जग की नहीं है
यह नहीं है हार मेरी
-4.7.1973