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धरी रह जाय यह वीणा अबोली / विमल राजस्थानी
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न भूलो मौत को तुम एक पल भी
पलट कर साँस फिर आये न आये
धरी रह जाय यह वीणा अबोली
सुरों की नींद गहरी धर दबाये
चिता शव को जला कर राख कर दे
न कोई कोष मोती का लुटाये
वहीं सब कुछ, यहाँ पर कुछ नहीं है
हजारों बार हम यह देख आये
विरह को आग में फूँको नशेमन
खुदा खुद दौड़ सीने से लगाये
जरा खुल कर सुरीली तान छड़ो
ये श्यामल मेघ फिर छायें न छायें
जमाने से नहीं हम, हमसे है जिन्दा जमाना
हमारे तेवरों से कायनातें डगमगायें
अगर शायर न हों तो सृष्टि का घूँघट न उलटे
इन काले बादलों से चाँद बाहर आ न पाये
-15.8.1974