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ज्योति-उदधि लहरे / विमल राजस्थानी
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ज्योति-उदधि लहरे
झलमल अमृत-सिन्धु लहरे
तले दबा भूगोल, चतुर्दिक नीरवता है
अनहद नाद कर्ण-कुहरों में यो बजता है
जैसे स्वर्ण-किरण पर कोई उँगली फेरे
स्वयम् ब्रह्म आत्मा को ही बाँहों में घेरे
नासाग्रे केन्द्रित मन अहरह लहर-लहर छहरे
ज्योति-उदधि लहरे
आया ज्वार, बूँद में परिणत हुआ सिन्धु, तट चूमा
षट-रिपु, अष्ठ-पाश में बँध कर दर-दर भटका घूमा
पùासन पर बैठ विकल मन को लहरों में डाला
टूटी साँकल जनम-मरण की, खुला मोह का ताला
अखिल-निखिल पर अमृत-पुरुष का स्वस्तिक-ध्वज-फहरे
ज्योति-उदधि लहरे