भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पावस - 6 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:09, 22 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खिलि मालती बेलि प्रफुल्ल कदम्बन,
पैं लपटी लहरान लगी।
सनकै पुरवाई सुगन्ध सनी,
बक औलि अकास उड़ान लगी॥
पिक चातक दादुर मोरन की,
कल बोल महान सुनान लगी।
घन प्रेम पसारत सी मन मैं,
घनघोर घटा घहरान लगी॥