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खुद्दी केॅ खिचड़ी / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।
भिनसर केऽ गेलहम एखन के अयलियौ
खून पसीना एक्केऽ बनैलियौ।
ााप पितरॅ के गाली सुनैलियौ
छाती पर पत्थॅल धैरकेॅ बचलियौ
अबहूँ तॅ कुच्छो खिलाय दे।
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।
कलौ करैक बेर राह हम देखलौं,
पता तोहर हम कनहूँ नैं पयलौं,
छाँक भर पानी पी काम पर पहुँचलौं,
झुकैत टगैत फटकार खूब सुनलौं,
ऐसन जीवन केॅ जराय दे!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।
गमछी फटल छै धीरे सें खोलिहें,
नीमक तीयौन के नामों नैं बोलिहें।
धीया-पूता केॅ केनहूँ मनैहियें
बचल-खुचल कुछो हमरो खिलैहियें
पानियें एखन पिलाय दे।
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय देगे भुखिया!
खुद्दी केॅ खिचड़ी बनाय दे।

-वर्ष 6, अंक-8, मुंगेर जून, 1954