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घूरा / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

Kavita Kosh से
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घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
सन-सन-सन-सन पछिया बहै छै
थर-थर-थर देह काँपव करै छै
लूल्ही लगल हय चलल न जाय छै
फुरती गरमाय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
सिरमा तर में खैनी रखल छै
मिरजै में चुनौटी धरल छै
अगर जों तनियों चूना बचल होय
तनियें खैनी लटाय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
ओढ़ना कहाँ से गमछी फटल छै
धोतियो में सौ सौ पेनी लगल छै
मिरजै के दोनों हत्थे उड़ल छै
फुरती सें बोरिये ओढ़ाय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।
भूखो लगल छै निन्दो न आवै
बाकी रुपैया के फिकिर सतावै
मुनिया, दुनिया कानव करै छौ
ठोक-ठाक कनहूँ सुताय दे।
घूरा सुनगाय दे गे कोशिया,
घूरा सुनगाय दे।

-मुंगेर दिसम्बर, 1954