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पिया परदेश कमाय लेल गेलखिन / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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पिया परदेश कमाय लेल गेलखिन तरसै छै अँखिया।
गेलै दशहरा, गेलै दीवाली, बरसै छै अँखिया।

हड्डी जाड़ लगै छै प्रियतम,
फाटलै साड़ी अंगिया।
भुखना भूखनी थर-थर काँपै,
फाटै हमरऽ छतिया।

बोरसी तरऽ में बाबू मैया थर-थर सारी रतिया।
पिया परदेश कमाय लेल गेलखिन तरसै छै अँखिया।
गेलै दशहरा, गेलै दीवाली, बरसै छै अँखिया।

बनियाँ अब उधार नै दै छै
केनाँक चढ़तै हाँड़ी?
बाग-बगीचा में पाबन्दी
नै घर दाल खेसारी।

घास पात काटला पर गारी, भोकरै छै बछिया।
पिया परदेश कमाय लेल गेलखिन तरसै छै अँखिया।
गेलै दशहरा, गेलै दीवाली, बरसै छै अँखिया।

नैं छप्पर पर छौनी रहलै,
पातर छीतर टटिया।
नैं पुआल धरती पर बालम!
टूटलै दोनों खटिया।

टप-टप ओस रात भर टपकै, सन-सन-सन पछिया।
पिया परदेश कमाय लेल गेलखिन तरसै छै अँखिया।
गेलै दशहरा, गेलै दीवाली, बरसै छै अँखिया।

-अंगिका लोक/ अक्तूबर-दिसम्बर, 2012