Last modified on 29 फ़रवरी 2016, at 14:11

चन्द्र-जेता सँ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 29 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ज्वालामुखी रहैत
चाँद शीतल छथि
मुदा हिमालय आ
सागर सँ भरल भू?
आगि सन धीपल।
मानव-मानव में मेल नहि
टाका लेल उलटे हम दानव
सुनु कान खोलि चन्द्र जेता सब
चाँद पर गेने की भेल?
जँ छूटल नहिं धरती केर कानब!

-स्वदेश वाणी, 1967, वैद्यनाथ देवघर, सं.प. अब झारखंड