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विद्यापतिक नाम पत्र / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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वसंत बिहीन अछि,
मिथिलाक वगिया।
अहाँक पठाबी कोनाँ
दिलकेर बतिया?

ढाम वेहे थिक
वेहे थिक फुलवारी।
पर न बटुक अब
होइय त्रिपुरारी।

अहाँक बहाओल,
मधुरस धारा;
छकि छकि पीवैत अछि
आजु जग सारा।

किन्तु, अहाँक बिना,
सून भवन अछि।
पुष्प सँ बिहीन तरू
जग केर चमन अछि।

कहू कोन तरहें?
मौॅन कऽ बुझाबी।
बिना अहाँक अईने,
दिलकऽ रिझाबी?

वसन्त बिहीन अछि
मिथिलाक वगिया।

-मुक्त कथन, 26.10.1973