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विद्यापति सँ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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अहाँक केवल
मिथिला सीमा में बांधब
अन्यायथीक
कूपमंडुकता थीक।

भारत के कण-कण में
अहाँकै गीत गुंजित अछि।
मास्को, वाशिंगटन, लंदन
शोध में लागल अछि।

अहाँक गीतक स्वर
सुरसरीक माध्यम सँ
समुद्रक लहर-लहर में
ब्याप्त अछि।

तें हेतु-
अहाँक केवल भारत सीमा में बांधब
सेहो अन्याये थीक।
अहाँ विश्वभर में लीन-
विश्वव्यापी छी।

हे महाकवि।
जब धरि सृष्टि अछि,
तबधरि अहाँक गति
हमर धरोहर अछि।
कोकिलक प्रणाम स्वीकार करु।

-बरौनी संदेश, 24 नवंबर, 1975