Last modified on 29 फ़रवरी 2016, at 14:17

बनब पिशाचिन / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 29 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नाचि रहल अछि प्रेत दहेजक,
बाजै अछि हरमुनियाँ
तिलक केर गीत-नाद भॅरहल अछि
मुदा सिसकै छथि कनियाँ।

बापकऽ पढ़ौलथिन चीठी,
”देहकेर लेहू सुखागेल,
पीठ सँ सेटि गेल पेट।
समीप अछि बाबूजी जीवनक खेल।“

”खेल पथार तॅ पहिनें बिकायेल,
अब जनि बेचू देह।
मोन पड़ै अछि रातदिन,
मेय, दीदी, भैया केर नेह।

परंच एक टा बात कहि दैत छी,
लगा लेब ”फाँसी“ बनब ”पिशाचिन“
सास, ससुर ननद सभ्भकेॅ लेब ”प्राण“
सुख सँ नै रहती ई घोॅर में ”सौतिन“।

-17.11.1992