भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सजनवा / अर्चना पंडा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:06, 2 मार्च 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना पंडा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मूक नयन की हूक करे जो कूक न जाना चूक सजनवा
नेह न जाए सूख कहूँ दो-टूक, मिटा दे भूख सजनवा

अभी भी ख़ास जो मेरे पास तेरा एहसास
वो बारो-मास रहे
मिलन की आस जगाये प्यास तेरा वो रास,
मधुर आभास रहे
चमक उठे दो नैन खुला जब यादों का संदूक सजनवा
मूक नयन की हूक, करे जो कूक, न जाना चूक, सजनवा

सुबह से शाम कलेजा थाम तेरा ही नाम,
है मेरा जाम हुआ
हुयी बदनाम, लुटा आराम, ओ मेरे राम !
ये क्या अंजाम हुआ
आज बाँध कर बाँहों में दो प्राण देह में फूँक सजनवा
मूक नयन की हूक, करे जो कूक, न जाना चूक, सजनवा

बनी मैं हीर उठी है पीर दिल रही चीर
न इक तस्वीर दिखी
नदी के तीर नयन में नीर मैं हूँ दिलगीर
है क्या तक़दीर लिखी
मैं तेरी अल्हड़ माशूका तू पागल माशूक सजनवा
मूक नयन की हूक, करे जो कूक, न जाना चूक, सजनवा

नेह का सार गीत का हार मधुर झंकार,
स्वप्न साकार है तू
है मेरा प्यार मेरा सिंगार, मेरा त्यौहार
मेरा संसार है तू
मेरी भूलें भूल हमेशा करना सही सलूक सजनवा
मूक नयन की हूक, करे जो कूक, न जाना चूक, सजनवा