मुकरियाँ - 3 / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
1.
रस लेती मैं उसके रस में।
हो जाती हूँ उसके वश में।
मैं खुद उस पर जाऊँ वारी।
क्या सखि, साजन? सखि, फुलवारी।
2.
बल उससे ही मुझमें आता।
उसके बिना न कुछ भी भाता।
वह न मिले तो व्यर्थ खजाना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, खाना।
3.
चमक दमक पर उसकी वारी।
उसकी चाहत सब पर भारी।
कभी न चाहूँ उसको खोना।
क्या सखि, साजन? ना सखि, सोना।
4.
उस से ही यह धरा सुहानी।
वह न रहे तो ख़त्म कहानी।
तू भी कब है, कम दीवानी।
क्या सखि, साजन? ना सखि, पानी।
5.
रात हुई तो घर में आया।
सुबह हुई तब कहीं न पाया।
कभी न वह हो पाया मेरा।
क्या सखि, साजन? नहीं, अँधेरा।
6.
तन से लिपटे, मन को भाये।
मन में अनगिन खुशियाँ लाये।
उसके बिना न चलती गाड़ी।
क्या सखि, साजन? ना सखि, साड़ी।
7.
खरी खरी वह बातें करता।
सच कहने में कभी न डरता।
सदा सत्य के लिए समर्पण।
क्या सखि, साधू? ना सखि, दर्पण।