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दयानन्द पाण्डेय
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दयानन्द पाण्डेय
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जन्म | 30 जनवरी 1958 |
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जन्म स्थान | गांव बैदौली, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
यह घूमने वाली औरतें जानती हैं | |
विविध | |
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद सम्मान तथा कहानी संग्रह ‘एक जीनियस की विवादास्पद मौत’ पर यशपाल सम्मान | |
जीवन परिचय | |
दयानन्द पाण्डेय / परिचय |
कविता संग्रह
हिन्दी कविताएँ
- यह तुम्हारे अधर / दयानन्द पाण्डेय
- पिछवाड़े का घर गिर रहा है / दयानन्द पाण्डेय
- इस कोहरे में किलोल / दयानन्द पाण्डेय
- मैं तुम्हारा कोहरा, तुम हमारी चांदनी / दयानन्द पाण्डेय
- प्रेम का यह जोग / दयानन्द पाण्डेय
- यह तुम्हारे विशाल उरोज / दयानन्द पाण्डेय
- मैं जेहादी, मैं मासूम / दयानन्द पाण्डेय
- खून में सना हुआ यह सूर्य, यह समय / दयानन्द पाण्डेय
- पर हे पाकिस्तान लेकिन तुम नहीं बदले! / दयानन्द पाण्डेय
- मेरी बेटी, मेरी जान! / दयानन्द पाण्डेय
- यह घूमने वाली औरतें जानती हैं / दयानन्द पाण्डेय
- यह तुम्हारा रूप है कि पूस की धूप / दयानन्द पाण्डेय
- प्रेम एक निर्मल नदी / दयानन्द पाण्डेय
ग़ज़लें
- झूठ बोलना भी अच्छा है पर कभी-कभी / दयानन्द पाण्डेय
- यह मन के दीप जलने का समय है तुम कहां हो / दयानन्द पाण्डेय
- सहिष्णुता के शैतान तुम्हारी ऐसी तैसी / दयानन्द पाण्डेय
- आखि़र तुम्हारी ज़न्नत का तकाज़ा क्या है / दयानन्द पाण्डेय
- जैसे गांव से शहर आ कर अम्मा मुझे विभोर कर देती है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम नहीं , वह नहीं , हम सब से बड़े हैं / दयानन्द पाण्डेय
- यह अहले लखनऊ है कुल्लू मनाली की बर्फ़ नहीं / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी मुहब्बत का जहांपनाह होना चाहता हूं / दयानन्द पाण्डेय
- अम्मा ने बुढ़ौती में पिता से खुल कर बग़ावत कर दी है / दयानन्द पाण्डेय
- देवदास लोग रोया नहीं करते सब के सामने / दयानन्द पाण्डेय
- माल रोड पर झूमती शिमला की रातें हैं / दयानन्द पाण्डेय
- अम्मा तुम्हारी गोद में दौड़ कर छुप जाने को जी करता है / दयानन्द पाण्डेय
- नीले आकाश में तुम्हारे साथ उड़ जाने को दिल करता है / दयानन्द पाण्डेय
- शादी खोजने निकलिए तो समाज बाजा बजा देता है / दयानन्द पाण्डेय
- बेईमानों के नाम नया साल लिखना चाहता हूं / दयानन्द पाण्डेय
- एक सपना है मेरे भीतर जो खिल कर सूर्य होना चाहता है / दयानन्द पाण्डेय
- सत्ता का मीठा जहर है तुम्हारे पास जो मेरे पास नहीं है / दयानन्द पाण्डेय
- इश्क कर के देखो इश्क आदमी को बादशाह बना देता है / दयानन्द पाण्डेय
- मैं सड़क पर हूं घने कोहरे में खोया ख़ुद को खोजता हुआ / दयानन्द पाण्डेय
- मालदा इस के विपरीत है यह बात बताऊं कैसे / दयानन्द पाण्डेय
- लेकिन यह मन के जंगल की आग है / दयानन्द पाण्डेय
- गंगा सागर हो आया हूं अब तुम्हारे द्वार आना चाहता हूं / दयानन्द पाण्डेय
- लेकिन सागर से उछल कर मिलती तो है / दयानन्द पाण्डेय
- प्यार की नाव में नदी बहती अब है / दयानन्द पाण्डेय
- चादर हमारी रोज फटती है सुबह शाम उसे सी रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- औरत मरती है टुकड़ों-टुकड़ों में दुनिया सारी हत्यारी होती है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी सरहदों पर गांधी के कुछ भजन गाना चाहता हूं / दयानन्द पाण्डेय
- ताजमहल भारत में है पाकिस्तान बना सकता नहीं / दयानन्द पाण्डेय
- वह ईमानदार है इस लिए बहुत हैरान और परेशान है / दयानन्द पाण्डेय
- यह पुस्तक मेला यह पुस्तक विमोचन दम तोड़ते हुए जलसे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सारे घोड़े वह अपने विजय रथ में बांध लेती है / दयानन्द पाण्डेय
- हम इतने बुजदिल हैं कि टुकुर-टुकुर सिर्फ़ ताकते रह गए / दयानन्द पाण्डेय
- जींस पहन कर फ़ेसबुक पर वह लाल सलाम बोलते हैं ताकि तने रहें / दयानन्द पाण्डेय
- फ़ेसबुक गूगल अमरीकी हैं पूंजीवादी हैं फिर आप यहां उपस्थित कैसे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- हम हार-हार जाते हैं जब तुम नहीं होती हो / दयानन्द पाण्डेय
- अंबेडकर वोट और नोट देता है तो वह गांधी को भूल जाते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- मीरा का एकतारा बजता रहता है और मन मोहन हो जाता है / दयानन्द पाण्डेय
- घर बेच कर शराब पी गए अब दुनिया जलाने की बात करते है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारे पास ख़ुद को छोड़ आया हूं / दयानन्द पाण्डेय
- इश्क में कोई बड़ा भी जो पड़ जाए तो बच्चा लगने लगता है / दयानन्द पाण्डेय
- पर इतने कायर हैं कि मां के गर्भ में उपस्थित लड़की से डरते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- वह दलित हैं वह सेक्यूलर हैं पर ज़िद ऐसे करते हैं जैसे छोटे बच्चे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- कांटे सारे हमारे गुलाब सारे तुम्हारे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- बहुत कर चुका प्रपोज तुम को अब तुम्हारी बारी है / दयानन्द पाण्डेय
- शिकारियों की चूजों पर बहुत तगड़ी नज़र है / दयानन्द पाण्डेय
- मेरिट मार खाती है तो लड़का टूटता बहुत है / दयानन्द पाण्डेय
- योजनाओं का पैसा कलक्टर और मुख्यमंत्री मिल कर पी जाता है / दयानन्द पाण्डेय
- जे एन यू में आतंक का कश्मीरी राग सुन कर हरगिज हैपी नहीं हैं / दयानन्द पाण्डेय
- मिलन के मंगल दिन हैं लेकिन बहुत लजाते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- फागुन की मस्त दस्तक है हम हर हाल हैपी हैं / दयानन्द पाण्डेय
- प्रेम का पहाड़ा कितना कठिन है बता देता है / दयानन्द पाण्डेय
- काश देशद्रोहियों को जो सीधे सीध गोली मार देने का क़ानून होता इस देश में / दयानन्द पाण्डेय
- वैलेंटाईन की बांसुरी बज रही बहुत मीठी तुम चली आओ / दयानन्द पाण्डेय
- जान से प्यारा पाकिस्तान का वह गीत अब गाने लगे / दयानन्द पाण्डेय
- देश में रहते खाते हैं पर देशद्रोह से पहचाने गए / दयानन्द पाण्डेय
- उन के पास पैसे हैं भारत की बर्बादी के नारे हैं तराने हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सुप्रीम कोर्ट अफजल की हत्यारी है यह कौन सी बात है / दयानन्द पाण्डेय
- भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह नारे लगते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी प्रेम नदी में साईबेरियन पक्षी की तरह हम उड़े हैं / दयानन्द पाण्डेय
- मन यायावर है ठहरता ही नहीं पारे की तरह फिसलता बहुत है / दयानन्द पाण्डेय
- मनी लांड्रिंग बढ़ती जाती है देशभक्ति की बात करते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- कुतर्क देखिए मां को बाप की बीवी बताते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- अभिव्यक्ति का पंचांग कुछ इस तरह हंस-हंस कर बांच रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- लहराती और लचकती हुई तुम कइन जैसी हो / दयानन्द पाण्डेय
- इशरत को बेटी अफजल को दामाद बताना चाहते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सेक्यूलर दिखने की बीमारी से लोग उबरना कहां चाहते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- संसद बजट रुपए का आना जाना सब बहुत बड़ा धोखा है / दयानन्द पाण्डेय
- कामरेड तुम्हारे फासीवाद की नदी / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारे साथ बहते हुए रहना चाहता हूं / दयानन्द पाण्डेय
- तुम हमारे साथ हो यह साथ ही सर्वदा याद रखते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- लगता है कामरेड तुम्हारी काठ की हाड़ी उतर गई है / दयानन्द पाण्डेय
- रहता है लखनऊ में लेकिन लाहौर सुहाता है / दयानन्द पाण्डेय
- अपने भीतर तुम को चीन्ह रहा हूं मैं / दयानन्द पाण्डेय
- जिस संसद पर भरोसा था देश को / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी आंख में मुझे खींचने वाला अब वह चुंबक नहीं रहा / दयानन्द पाण्डेय
- मेरे ही कांधे पर सिर रख कर दुलराना मुझे / दयानन्द पाण्डेय
- आग बन कर मन को दहकाने लगे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- लोग तो मिलते ही रहते हैं हरदम ख़ुद से मिले बहुत दिन हुए / दयानन्द पाण्डेय
- जैसे अपने मन का वह कोई गड्ढा पाट रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- आम में बौर देखता हूं और तुम्हें खोजता हूं / दयानन्द पाण्डेय
- मन में फूल खिला कर हम को फिर तड़पाने आए हैं / दयानन्द पाण्डेय
- मधुमास की हवा में बहा जा रहा हूं / दयानन्द पाण्डेय
- जातीय आग में कूद फांद कर देश जलाने आए हैं / दयानन्द पाण्डेय
- आप उन्हें देशद्रोह पर घेरेंगे वह वंचित दलित बन जाएंगे / दयानन्द पाण्डेय
- वह मर मिटना चाहता है देश के लिए देश को मां मानता है / दयानन्द पाण्डेय
- बेटी को पेट में ही मार कर वह महिला दिवस मनाते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- अब फागुन के दिन हैं सताने लगे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- चकमा देने वाले ही अब तो हर रोज चमक रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- शेर सारे पिंजरे में कैद रंगे सियारों के दिन हैं / दयानन्द पाण्डेय
- साथ रोती साथ हंसा करती है बेटी तो ऐसी ही हुआ करती है / दयानन्द पाण्डेय
- इन दिनों फैशन नया चला है सेना को गरियाने का / दयानन्द पाण्डेय
- जाने कौन सी बीमारी लग गई है उन को हर एक बात बुरी लगती है / दयानन्द पाण्डेय
- संसद मीडिया अदालत अफ़सर सब सज धज कर तैयार खड़े हैं / दयानन्द पाण्डेय
- ग्लोब्लाइज हो गए हैं बच्चे लेकिन यह लोग तो मनुस्मृति में उलझे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सेक्यूलरिज़्म के शौक ने उन्हें पमेलियन कुत्ता बना दिया / दयानन्द पाण्डेय
- खिड़कियां प्यार की खुल गईं मधुमास में / दयानन्द पाण्डेय
- हम बहुत रश्क से जावेद अख्तर अनुपम खेर देखते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- भारत माता की जय बोलने से घबराए लोग जय हिंद बोल रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- प्यार सितार का तार होता है टूट कर बज नहीं सकता / दयानन्द पाण्डेय
- मधुबाला जैसी तुम्हारी आंखों में आशनाई बहुत है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारे साथ हम नाव में क्या चढ़े यह अंजोरिया मचल गई / दयानन्द पाण्डेय
- तुम आती हो तो आता है फागुन फिर होली हैपी करती है / दयानन्द पाण्डेय
- मदहोश हो गए हैं रंग भी तुम से आज होली खेल कर / दयानन्द पाण्डेय
- अंबेडकर के आरक्षण की यही बड़ी सफलता है / दयानन्द पाण्डेय
- घर परिवार में उलझी स्त्री प्रेम में आ कर सुलझती है / दयानन्द पाण्डेय
- और तो और ललमुनिया की माई बदल गई / दयानन्द पाण्डेय
- कभी असहिष्णुता तो कभी भारत माता की जय का गिला है / दयानन्द पाण्डेय
- कम्युनिस्ट हो कर पूजा करना भी बहुत बड़ी लाचारी है / दयानन्द पाण्डेय