भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो कुछ है मेरी मुट्ठी में / रति सक्सेना

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:21, 22 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना }} जो कुछ है मेरी मुट्ठी में<br> मैं गिराती चल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो कुछ है मेरी मुट्ठी में
मैं गिराती चलती हूँ
जितनी भी कोशिश करूँ
सहेजने की

क्या है मेरी मुट्ठी में
मैं कोशिश करती हूँ जानने की
संवेदनाएँ, शिकायतें या फिर
कुछ सिक्के

जो कुछ भी हैं वे, गिरते जाते हैं
और हर बार उनका गिरना
अंकित हो जाता है
मेरी दाई आँख के
एक दम नीचे
एक काले धब्बे की शकल में

मैंने खिड़की खोल दी हैं
दरवाजे भी,
पर्दों को हटा दिया,
रोशनी मेरे कमरे घुस सकती है
अल्ट्रा वायलेट के बारे में
चिन्ता किए बिना

मैंने खोल दी है
मुट्ठी भी
छुटकारा मिल गया मुझे
उन सब से
जो कुछ मेरी मुट्ठी में था